वेस्टर्न टॉयलेट उन्हीं लोगों को इस्तेमाल करना चाहिए जिन्हें घुटने में दर्द रहता हो या पैरों की सर्जरी हुई हो --डॉ प्रदीप त्रिपाठी

वेस्टर्न टॉयलेट उन्हीं लोगों को इस्तेमाल करना चाहिए जिन्हें घुटने में दर्द रहता हो या पैरों की सर्जरी हुई हो --डॉ प्रदीप त्रिपाठी

कोरबा। बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि सारी बीमारी पेट से शुरू होती है. पेट साफ रहे तो व्यक्ति स्वस्थ रहता है लेकिन गौर करने वाली बात है कि वेस्टर्न टॉयलेट की वजह से ठीक तरीके से मोशन नहीं हो पाता और व्यक्ति कब्ज का शिकार हो जाता है। मॉर्डन होती दुनिया से व्यक्ति का जीवन भले ही आरामदायक बन गया हो लेकिन इस तरह का टॉयलेट परेशानी का कारण है। कई स्टडी में यह सामने आ चुका है कि वेस्टर्न टॉयलेट के इस्तेमाल से पेट साफ नहीं हो पाता है और इसके कारण हर साल कब्ज के मरीज बढ़ते जा रहे हैं। 

1596 में इंग्लैंड के सर जॉन हैरिंगटन ने पहली बार फ्लश टॉयलेट का आविष्कार किया लेकिन इसमें कई खामियां थीं. 1775 में एलेंक्डेंजर कुम्मिंग ने बेहतर फ्लश लैवेटरी बनाई लेकिन 1778 में जोसेफ ब्रामाह ने इसमें और सुधार किया और आज के जमाने का मॉडर्न इंग्लिश टॉयलेट बना दिया. 19वीं शताब्दी तक यह लग्जरी समझे जाते थे और आम लोगों की पहुंच से दूर थे लेकिन धीरे-धीरे यह खास से आम हो गए और कब्ज करने की वजह से बदनाम हो गए.। 

इंग्लिश टॉयलेट का इस्तेमाल ना करना बहुत मुश्किल है क्योंकि आजकल हर जगह यही बना मिलता है. अक्सर लोग इस टॉयलेट पर 90 डिग्री एंगल की पोजिशन पर बैठते हैं यानी कमर सीधी होती है और बॉडी की बैक साइड झुकी होती है. यह बहुत खतरनाक पोजीशन है क्योंकि इससे आंतों का रास्ता बंद हो जाता है और बाउल मूवमेंट पर जोर पड़ता है.वहीं कुछ लोग इंग्लिश टॉयलेट पर कमर झुकाकर बैठते हैं, यह भी गलत है. इससे भी मल आंतों में फंसा रहता है और पेट साफ नहीं हो पाता। 

कोरबा के प्रसिद्ध न्यू सर्जन डॉ. प्रदीप त्रिपाठी कहते हैं कि इंडियन टॉयलेट वेस्टर्न टॉयलेट से ज्यादा बेहतर होते हैं. इंडियन टॉयलेट में स्क्वाट पोजीशन में बैठा जाता है जिससे एनस और रेक्टम सीधा रहता है और इससे मल आसानी से शरीर से बाहर निकल जाता है. वेस्टर्न टॉयलेट के इस्तेमाल के दौरान हिप्स और थाइज सीधे नहीं होते जिससे मल पेट में रह जाता है। डॉ० त्रिपाठी का कहना है कि खासकर वेस्टर्न टॉयलेट उन्हीं लोगों को इस्तेमाल करना चाहिए जिन्हें घुटने में दर्द रहता हो। जिन लोगों की पैरों की सर्जरी हुई हो, वह भी इसे इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन बाकी लोगों को इंडियन टॉयलेट ही इस्तेमाल करना चाहिए। 

इंग्लिश टॉयलेट के साथ स्टूल लगा लें और मोशन करने के दौरान पैर उस पर टिका लें. बॉडी की पॉजिशन इस तरह हो कि हिप्स और अपर बॉडी के बीच 35 डिग्री का एंगल बन जाए. इससे पेट से मल पूरी तरह निकल जाएगा। हो सकता है कि शुरू में इस पोजीशन में बैठने अजीब लगे और कमर पर जोर पड़े लेकिन ऐसा करने से कब्ज की समस्या नहीं होगी.

इंग्लिश टॉयलेट का इस्तेमाल करने से पहले सुबह खाली पेट उकड़ू बैठकर पानी पीएं. यह पानी सादा होना चाहिए. इसे थोड़ा गुनगुना किया जा सकता है. आयुर्वेद में भी इस बात का जिक्र है. पानी पीने के बाद टॉयलेट जाएं. ऐसा करने से आंतें साफ हो जाएंगी और मल पूरी तरह से शरीर से बाहर निकल जाएगा। 

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन की रिसर्च में सामने आया कि इंग्लिश टॉयलेट के इस्तेमाल से पेल्विक डिजीज में बढ़ोतरी हुई है. ऐसा 1900 के बाद ज्यादा हुआ क्योंकि आम लोगों के बीच इंग्लिश टॉयलेट का इस्तेमाल बढ़ा. कब्ज के साथ ही पाइल्स यानी बवासीर भी पेल्विक डिजीज में आती है. अगर कब्ज लंबे समय से हो तो यह पाइल्स बन सकता है. इसमें पेट पर जोर लगाने से रेक्टम और एनस यानी गुदा की नसों में सूजन आ जाती है. कई बार इंग्लिश टॉयलेट के साथ लगा पानी का जेट भी पाइल्स की वजह बन जाता है. इससे निकलने वाला पानी का तेज प्रेशर नसों को सूजा देता है या डैमेज कर देता है। 

कब्ज से बचने के लिए खानपान सही होना चाहिए. प्रोसेस्ड फूड और जंक फूड से दूर रहें. कॉफी, चाय, सोडा और एनर्जी ड्रिंक कम से कम पीएं. पानी, सूप, जूस ज्यादा पीएं. खाने में फाइबर को शामिल करें. इसके लिए कच्ची सब्जियां, फल, बींस और अंकुरित अनाज लें. खूब सारा पानी पीएं, रात को खाने के बाद भीगे हुए मुनक्का खाएं. इससे मोशन सॉफ्ट होगा और सुबह आसानी से आंतों से बाहर निकल जाएगा. अंजीर और खुबानी से भी पेट साफ होता है। 

हेल्थलाइन के अनुसार जो लोग तनाव में रहते हैं, उनका पेट साफ नहीं हो पाता। दरअसल तनाव में स्ट्रेस हॉर्मोन रिलीज होते हैं जिससे बाउल मूवमेंट प्रभावित होती है. मल का कनेक्शन दिमाग से है। तनाव में पेट की गंदगी शरीर से बाहर नहीं निकल पाती. स्ट्रेस को दूर करने के लिए ब्रीदिंग एक्सरसाइज करें और पॉजिटिव माहौल में रहें। इसके अलावा वर्कआउट पर भी ध्यान दें. जितनी ज्यादा बॉडी की मूवमेंट रहेगी, गट हेल्थ दुरुस्त होगी और बाउल मूवमेंट बनी रहेगी। अमेरिकन हार्ट असोसिएशन (AHA) के अनुसार हफ्ते में 150 मिनट की फिजिकल एक्टिविटी से डायजेशन और बाउल मूवमेंट बेहतर होती है.