कहाँ छिपे है इस क्षण में ?
अम्बर धरा का भेद नही , अब भेद रहा है मन-मन में ।
पहले जो आलिंगन करते , कहाँ छिपे है इस क्षण में ।।
रवि-कवि सब साथ चलें , छुद्र न हो कोई बलवान ।
अपने-अपनो से मिलने को , आतुरता का क्या निदान ।।
नास्तिकता भूला यह जग , ईश्वर को देखे कण-कण में ।
पहले जो आलिंगन करते , कहाँ छिपे है इस क्षण में ।।

कर पलायन ठौर वो बदले , लाचारी बदहाली में ।
विपदा को ढो-ढोकर के , लेकर आये थाली में ।।
संकट की व्यापकता को , क्या जीत सका कोई रण में ।
पहले जो आलिंगन करते , कहाँ छिपे है इस क्षण में ।।

‘अतिथि देवो भव’ यह , प्रथा पुरातन है अब भी ।
क्षणिक धैर्य गर कर लोगे , तो विश्व विजय होगा तब ही ।।
अन्यथा की दशा में , समझ न होगा जन-जन में ।
पहले जो आलिंगन करते , कहाँ छिपे है इस क्षण में ।।
रिश्ते-नाते भूलकर बस , संयम अभी बरतना है ।
मानवता के अनुपालन में , ऋषि जीवन मे ढलना है ।।
कौन कर रहा दूर तुम्हे बस , जहर न फैले तन-मन में ।
पहले जो आलिंगन करते , कहाँ छिपे है इस क्षण में ।।
जीव धरा पर शेष न होगा , गर जो विपदा नही टली ।
‘ मणि ‘ का विनय स्वीकार्य हो , लगती हो जो सही-भली ।।
अनुनय-विनय है मेरी इच्छा , बस जाए सबके मन में ।
पहले जो आलिंगन करते , कहाँ छिपे है इस क्षण में ?
कहाँ छिपे है इस क्षण में– कहाँ छिपे है इस क्षण में–
रघुबंशमणि दूबे